स्कूल, दोस्त और चाय

स्कूल, दोस्त और चाय

चाय से जुड़ा एक और किस्सा याद आता है।   जब हम स्कूल में थे तो आपस में किसी दोस्त का किसी दोस्त से किसी बात पर झगड़ा हो जाता  था और बोलचाल बंद हो जाती थी तो बाकि के दोस्त इंटरवल में स्कूल के बगल वाली चाय की दूकान पर लेकर जाते थे।   एक चाय का आर्डर दिया जाता था और फिर जिन दोस्तों के बीच झगड़ा होता था, उन दोस्तों को एक ही कप में बारी बारी से एक एक सिप चाय पीनी पड़ती थी, जब तक कप खाली न हो जाये और असर ये होता था की इंटरवल के बाद जब स्कूल को जाना होता था, तो थोड़ी देर पहले तक गुस्साये दोस्त कंधो पर हाथ रखकर स्कूल की तरफ चल पढ़ते थे। 

आज भी जब कभी विषय को लिखने में अटक जाता हूँ, चाय याद आती है।  पता नहीं क्यों चाय मेरे लिए टॉनिक का काम करती है।  चाय की एक एक सिप दिमाग के तारो को झनझना देती है और शब्दों और भावो का ऐसा मेल कराती है जैसे गर्म पानी में चाय की पत्तियाँ, शक्कर और दूध घुल जाती है और बन जाती है – नयी कविता या फिर नयी कहानी और एक गरम प्याली चाय।

मेरे लिए चाय सिर्फ पेय नहीं है – इसके साथ जुड़ा है यादो का एक सुनहरा पन्ना – मेरी माँ का प्यार और पहाड़ो की ठंडक का एहसास, गुड़ की मिठास और वो केतली से निकली चाय की खुशबू। 

कभी अकेले तो कभी दोस्तों के साथ पीजिये। यादों के कारवाँ में चाय को शामिल करिये और यकीन जानिए – यह जीवन जीने के लिए नयी ताजगी देता है।   मेरे जैसे शब्दों के खिलाडी के लिए तो ये टॉनिक है ही, आप भी आजमा कर देखिये।